डॉक्टरों को पढ़ा सकते हैं लेकिन परीक्षा नहीं ले सकते हैं।

प्रयागराज, यूपी। हेडिंग पढ़ने में अजीब लग रहा होगा कि आप किसी को पढ़ाकर डॉक्टर बना सकते हैं लेकिन उसी डॉक्टर छात्र की परीक्षा नहीं ले सकते हैं , उनकी परीक्षा कोई चिकित्सक प्रोफ़ेसर या अध्यापक ही लेगा। आइये पहले हम हम जान लेते हैं कि ऐसा क्यों कहा जा रहा है। मेडिकल के छात्रों को पढ़ाने वाले दो तरह के प्रोफ़ेसर होते हैं एक होते हैं एमएससी करके नेट क्वालीफाई करके पीएचडी किये होते हैं , जो विषय विशेष के विशेषज्ञ होते हैं जो छात्रों को बेसिक एनाटॉमी , फिजिओलॉजी , बायोकेमेस्ट्री , फार्मिकोलोजी आदि पढ़ाते हैं , और दूसरे प्रोफ़ेसर वे होते हैं जो एमबीबीएस करके कुछ सालों के अनुभव के आधार पर फकैलिटी बनते हैं।

1997 और 1998 के मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया की गाइड लाइन के अनुसार दोनों तरह के अध्यापक मेडिको और नॉन मेडिको जो पढ़ाते हैं वे परीक्षक बन सकते हैं। यह गाइड लाइन चल रही थी और वर्षों से नॉन मेडिको प्रोफ़ेसर परीक्षक बनते आए हैं। 2019 में नेशनल मेडिकल कमीशन बना , कमीशन ने सीबीएमई यानी कप्टेन्सी बेस्ड मेडिकल एजुकेशन 2023 के रूप में गाइड लाइन बनाया जिसमें यह व्यवस्था दी गयी कि पढ़ने को तो नॉन मेडिको पढ़ा सकते हैं लेकिन परीक्षक केवल एमबीबीएस के बाद बने प्रोफ़ेसर ही बन सकते हैं , इसको 1 अगस्त 2023 से लागू भी कर दिया गया।

इसके खिलाफ जो पिछले 35 से 40 साल से नॉन मेडिको प्रोफ़ेसर मेडिकल के छात्रों को पढ़ा रहे थे वे कोर्ट गए , पहले राजस्थान और केरल कोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया था। हाई कोर्ट प्रयागराज में जस्टिस अतीत कुमार ने अधिवक्ता मोहित कुमार की याचिका पर एनएमसी से सवाल किया कि यह कैसे हो सकता है कि कोई अध्यापक पढ़ा रहा है और वही परीक्षा नहीं ले सकता है ? आप अपने गाइड लाइन को इस तरह से कर सकते हैं कि 1 अगस्त 2023 के बाद के नॉन मेडिको प्रोफ़ेसर परीक्षक नहीं बन सकते लेकिन जो 1 अगस्त 2023 के पहले के अध्यापक हैं वे परीक्षक क्यों नहीं बन सकते हैं ? एनएमसी ने कोर्ट को बताया कि एक पात्र जारी किया गया है कि 1 अगस्त 2023 के पहले जो नॉन मेडिको प्रोफ़ेसर हैं वे परीक्षक बन सकते हैं।

याचिकाकर्ताओं के पास आधार क्या था के सवाल पर अधिवक्ता मोहित कुमार ने कहा कि मौलिक अधिकार के अनुक्षेद 14 और 16 का उलंघन हो रहा था , जिसमें कहा गया है कानून के सामने सब बराबर हैं , जो प्रोफ़ेसर अपने विषय का विशेषज्ञ है वह परीक्षा नहीं ले सकता है और वहीँ दूसरे प्रोफ़ेसर ले सकते हाइमन यह कानून के सामने समानता के मौलिक अधिकार का उलंघन था जिसको कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए आदेश दिया।

सवाल यह था कि जब इस केस में मौलिक अधिकार 14 और 16 का उलंघन हुआ तो आने वाले समय में भी जो प्रोफ़ेसर 1 अगस्त 2023 के बाद नॉन मेडिको बनेंगे और जो एमबीबीएस और अनुभव के बाद बनेंगे , नॉन मेडिको प्रोफ़ेसर परीक्षक नहीं बन पाएंगे तब भी तो अनुक्षेद 14 और 16 का उलंघन होगा , इस पर अधिवक्ता मोहित कुमार ने कहा कि कोर्ट वर्तमान की समस्या पर अपना फैसला सुना चुकी है बाद में यह मुद्दा जरूर आएगा तब कोर्ट देखेगी।

इस तरह से सरकारें गाइड लाइन जारी कर देती हैं कि एक ही काम करने वाले दो लोग अलग अलग नजरिये से देखे जाएँ और कोर्ट को आदेश देना पड़े इसके पहले हर पहलु पर नजर दाल लेना चाहिए। याचिकाकर्ताओं में डॉ गीता जायसवाल तीन दशक से नॉन मेडिको हैं पढ़ा रही हैं और परीक्षक भी रही हैं लेकिन नए गाइड लाइन के अनुसार अब परीक्षक नहीं बन सकती हैं , इसी तरह डॉ स्वेता द्विवेदी , डॉ सोबिया करीम अंसारी , डॉ आनंद नारायण सिंह , डॉ विपुल चंद्रा कलिता आदि 56 लोगों ने याचिका डाली थी जिनकी तरफ से अधिवक्ता मोहित कुमार और उनकी टीम ने बहस किया। हाई कोर्ट के इस फैसले से बहुत से नॉन मेडिको प्रोफ़ेसर अब परीक्षक बन सकते हैं और वर्षों से पढ़ा रहे अध्यापकों को रहत मिली।