मिथाइलआइसोसाइनेट गैस ने ली थी हज़ारों लोगों की जान कई हज़ार बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हुए

AT रिपोर्टर देवेन्द्र कुमार जैन भोपाल मध्य प्रदेश
भोपाल शहर में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नाम की एक विदेशी कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगों की जान गई। बहुत सारे लोग कई तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। यूनियन कार्बाइड को इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार पाया गया, लेकिन कम्पनी ने इस त्रासदी के लिए खुद को जिम्मेदार मानने से साफ इंकार कर दिया जिसके परिणामस्वरूप लगभग 15000 लोगों की मृत्यु हो गयी और लगभग 500000 व्यक्ति इससे प्रभावित हुए। भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनेट (MIC) नाम की ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन संयुक्त राज्य अमेरिका की रसायन और कीटनाशक बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है ।1984 में भोपाल स्थित संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट नामक गैस के रिसाव को अब तक की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना माना जाता है।मरने वालों के अनुमान पर विभिन्न स्त्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता मिलती है। सरकारी आंकड़ों की मानें तो भोपाल गैस त्रासदी में मरने वालों की संख्या 3,787 थी, जबकि सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई एक रिपोर्ट में यह संख्या 15,724 से ज्यादा बताई गई है। जबकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि मरने वालों की संख्या 33 हजार से ज्यादा थी। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3787 लोगों की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे। यह दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी थी। 2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब 558,125 सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने वालों की संख्या लगभग 38,478 थी। 3900 तो बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये। भोपाल गैस त्रासदी को लगातार मानवीय समुदाय और उसके पर्यावास को सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता रहा है। इसीलिए 1993 में भोपाल की इस त्रासदी पर बनाए गये भोपाल-अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को इस त्रासदी के पर्यावरण और मानव समुदाय पर होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को जानने का काम सौंपा गया था।कम्पनी के गैस पीड़ितों के साथ हुए एक समझौते और भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के शुरुआत के साथ भारत में इसका अध्याय समाप्त हो गया।