संगम में पिंडदान का सिलसिला शुरू।

प्रयागराज,यूपी। “प्रयाग मुंडे, काशी ढूंढे, गया पिंडे पुरखों की आत्मा की शांति हेतु शुरू पितृपक्ष में पित्र धाम से धराधाम पर आए पितरों को पिंडदान दिया जाता है। पिंडदान से पहले केश दान किया जाता है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में  पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण और मुंडन का विशेष महत्व बताया गया है। तीर्थराज प्रयाग के गंगा और संगम तट पर केश दान और पिंडदान का महत्वपूर्ण पुण्य लाभ है। “प्रयाग मुंडे, काशी ढूंढे, गया पिंडे” का सनातन धर्म में विशेष महत्व है पितृपक्ष में प्रयाग के गंगा और संगम तट पर किए जाने वाले मुंडन संस्कार एवं पिंडदान का महत्वपूर्ण ऐसा बताया जाता है।


दरअसल पुरखों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए एक पखवाड़े तक चलने वाले पितृ पक्ष की पूर्णिमा को श्राद्ध के साथ इसकी शुरूआत होती है। पितृ मुक्ति का प्रथम व मुख्य द्वार कहे जाने की वजह से संगम नगरी प्रयागराज में पिंडदान और श्राद्ध का विशेष महत्व है। यही वजह है कि पितृ पक्ष में बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम में आकर पुरखों का तर्पण और पिंडदान करते हैं।


यहां आने वाले श्रद्धालु त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना के साथ ही सुख समृद्धि के लिए भी गंगा मइया से कामना करते हैं। सनातन हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष में पिंडदान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों में पूर्वजों को किये गए पिंडदान का फल उन्हें प्राप्त होता है और मोक्ष मिलता है. हिन्दू धर्म में पिंडदान प्रयाग, काशी और गया में तीन स्थानों पर होता है। इसके बाद सबसे अंत में बद्रीनाथ धाम में भी पिंडदान की परंपरा है। लेकिन पितरों के श्राद्ध कर्म की शुरुआत प्रयाग के संगम तट पर मुण्डन संस्कार से ही होती है। श्रद्धालु यहां मुंडन कराकर 17 पिंड तैयार करते हैं और विधि विधान से पूजा अर्चना के बाद उसे संगम में विसर्जित करते हैं।


ऐसी भी मान्यता है कि पितृ पक्ष में संगम में पिंडदान करने से पितृ ऋण से भी मुक्ति मिलती है। तीर्थ पुरोहित प्रदीप पांडेय के मुताबिक पितृ अमावस्या के मौके पर संगम में केश दान कर पिंडदान करने से गया में पिण्डदान के बराबर ही पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है। पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन पितृ पक्ष में धरती पर आये पितरों को याद कर उन्हें विदाई दी जाती है। इस दिन का इतना बड़ा महत्व है कि यदि पूरे पितृ पक्ष में कोई पितरों का तर्पण नहीं कर सका है, तो इस दिन पितरों को याद कर दान करने और गरीबों को भोजन कराने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि पितृ अमावस्या के दिन दान करना फलदायी होता है और इस दिन दान करने से राहु के दोष से भी मुक्ति मिलती है।