“ये बारिश की दिव्य फुहारे”

विजया लक्ष्मी तिवारी

ये बारिश की दिव्य फुहारे
छम-छम , छम-छम शोर मचाती
धरती की ये प्यास बुझाती
कष्ट धरा की हरती आकर
सिखलाती हम बने सहारे
ये बारिश की दिव्य फुहारे।

धरा पर ये बूंदे आकर
बुछते जिंदगी को संवारती
और हमे सन्देश दे जाती
जहाँ कहीं कोई वृद्ध निर्बल
या बालक या अबला पड़े हो
जाकर उनका बनो सहारे
ये बारिश की दिव्य फुहारे।

इस धरा पर परम पिता ने
जब इंसान बनाया होगा
तत्क्षण उसके दिल में
यही विचार आया होगा
मानव को हमने बुद्धी दी
धरा का श्रेष्ठ प्राणी बनाया
धरा को यह स्वयं सवारें
ये बारिश की दिव्य फुहारे।

परम पिता के इस आशय को
और उनके इस विश्वास को
हम शाश्वत सत्य में बदलें
और दुनिया में सिद्ध करें हम
प्राणी मात्र की सच्ची सेवा
यही सत्य है बाकी मिथ्या
ये बारिश की दिव्य फुहारे।